कंडाली ( बिच्छू घास ) की देश-विदेश में भारी मांग



देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज। कंडाली उत्‍तराखंड के पहाड़ी जिलों में पायी जाने वाली एक ऐसी घास है, जिसे छूने से लोग डरते हैं। वहीं, दूसरी ओर यह स्‍वाद से लेकर दवा और आय का भी स्रोत है। इसे स्‍थानी भाषा में कंडाली के नाम से जाना जाता है। अगर ये घास गलती से छू जाए तो उस जगह झनझनाहट शुरू हो जाती है, लेकिन यह घास कई गुणों को समेटे हुए हैं। इससे बने साग का स्‍वाद लाजवाब है, वहीं इस घास बनी चप्‍पल, कंबल, जैकेट से लोग अपनी आय भी बढ़ रहे हैं। आइये जानते औषधीय गुणों से भरपूर इस घास के बारे में।

कंडाली से बना साग का स्‍वाद है लाजवाब


पहाड़ के व्यंजन जहां स्वाद में भरपूर हैं वहीं बेहद पौष्टिक भी। इस लाजवाब खाने का स्वाद हर किसी की जुबां पर हमेशा रहता है। इसी को देखते हुए अब पहाड़ी खानों की मैदानी क्षेत्रों में भी काफी मांग बढ़ गई है। इसमें से एक है कंडाली का साग। साग जो खाने में इतना स्वादिष्ट कि आज भी भुलाये नहीं भूलता। कंडाली के साग के साथ झंगोरे (एक प्रकार का पहाड़ी भात) का स्‍वाद लेंगे तो आप हमेशा याद रखेंगे।


इसलिए कहते हैं इसे बिच्‍छु घास


अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है। बिच्छू घास की पत्तियों पर छोटे-छोटे बालों जैसे कांटे होते हैं। पत्तियों के हाथ या शरीर के किसी अन्य अंग में लगते ही उसमें झनझनाहट शुरू हो जाती है। जो कंबल से रगड़ने से दूर हो जाती है। इसका असर बिच्छु के डंक से कम नहीं होता है। इसीलिए इसे बिच्छु घास भी कहा जाता है। उत्तराखण्ड के गढ़वाल में कंडाली व कुमाऊंनी मे सिंसोण के नाम से जाना जाता है।


औषधीय गुणों से है भरपूर


औषधीय गुणों से भरपूर इस पौधे का खासा महत्व है। बिच्छू घास का प्रयोग पित्त दोष, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया के इलाज में तो होता ही है, इसके बीजों को पेट साफ करने वाली दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। माना जाता है कि बिच्छू घास में काफी आयरन होता है। इस पर जारी परीक्षण सफल रहे तो उससे जल्द ही बुखार भी भगाया जा सकेगा। इसमें विटामिन ए, सी आयरन, पोटैशियम, मैग्निज तथा कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसको प्राकृतिक मल्‍टी विटामिन नाम भी दिया गया है। इसके कांटों मे मौजूद हिस्टामीन की वजह से मार के बाद जलन होती थी।


बिच्छू घास से बने जैकेट की देश-विदेश में भारी मांग


जंगलों में उगने वाली बिच्छू घास यानी हिमालयन नेटल (स्थानीय भाषा में कंडाली) से उत्तराखंड में जैकेट, शॉल, स्टॉल, स्कॉर्फ व बैग तैयार किए जा रहे हैं। चमोली व उत्तरकाशी जिले में कई समूह बिच्छू घास के तने से रेशा (फाइबर) निकाल कर विभिन्न प्रकार के उत्पाद बना रहे हैं। अमेरिका, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, रूस आदि देशों को निर्यात के लिए नमूने भेजे गए हैं। इसके साथ ही जयपुर, अहमदाबाद, कोलकाता आदि राज्यों से इसकी भारी मांग आ रही है। चमोली जिले के मंगरौली गांव में रूरल इंडिया क्राफ्ट संस्था और उत्तरकाशी जिले के भीमतल्ला में जय नंदा उत्थान समिति हस्तशिल्प उत्पाद बनाने का काम करती हैं। इन संस्थाओं ने बिच्छू घास के रेशे से हाफ जैकेट, शॉल, बैग, स्टॉल बनाए हैं।


उत्‍तराखंड में रिंगाल, जूट, कंडाली (बिच्छू घास) और कॉपर से तैयार प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ने लगी है। इनकी ऑनलाइन सेल के लिए भी उद्योग विभाग तैयारी कर रहा है। उत्तराखंड की कॉटेज इंडस्ट्री के लिए ये उत्साहित करने वाली खबर है। राज्य में छोटे-छोटे समूहों द्वारा भीमल, रिंगाल, कंडाली जैसे पेड़ पौधों से तैयार किए जा रहे उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री के लिए उद्योग विभाग कई कंपनियों से वार्ता कर रहा है। 


हिमालयन नेटल चाय की कीमत 290 रुपये प्रति सौ ग्राम


पहाड़ की एक घास (बिच्छू घास) जो बदन पर लग जाए तो खुजली के मारे जान निकल जाती है, लेकिन कभी आपने सोचा है कि यह घास चाय की मीठी चुस्की भी दे सकती है। कंडाली की चाय को यूरोप के देशों में विटामिन और खनिजों का पावर हाउस माना जाता है। जो रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी बढ़ाता है। इस चाय की कीमत प्रति सौ ग्राम 150 रुपये से लेकर 290 रुपये तक है। बिच्छू घास से बनी चाय को भारत सरकार के एनपीओपी (जैविक उत्पादन का राष्ट्रीय उत्पादन) ने प्रमाणित किया है।



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