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अभी तक 24 हजार से अधिक तीर्थयात्री कर चुके चारधाम के दर्शन

देहरादून। अभी तक 24 हजार से अधिक तीर्थयात्री चारधाम के दर्शन कर चुके हैं। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन बोर्ड द्वारा प्रदेश के लोगों के लिए चार धाम यात्रा का 1 जुलाई से शुभारंभ हुआ  जबकि 25 जुलाई से कुछ प्रावधानों के साथ चार धाम यात्रा सभी के लिए शुरू हुई। चार धाम तीर्थयात्रा हेतु उत्तराखंड से बाहर के तीर्थ यात्री 72 घंटे पूर्व की इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर)  से प्रमाणित लैब से कोरोना जांच की नैगेटिव रिपोर्ट अथवा क्वारंटीन अवधि का प्रमाण एवं स्वास्थ्य मानको का पालन कर देवस्थानम बोर्ड से ई-पास बनाकर चारधाम यात्रा कर सकेंगे। आज शाम तक उत्तराखंड देवस्थानम् प्रबंधन बोर्ड की वेबसाइट से 412 लोगों ने चार धामों हेतु ई -पास बुक कराये हैं। जिसमें श्री बदरीनाथ धाम के लिए 127 श्री केदारनाथ धाम के लिए 221 श्री गंगोत्री धाम हेतु  36 श्री यमुनोत्री धाम हेतु 28 लोगों ने ई पास बुक कराये है। आयुक्त गढ़वाल व उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम् प्रबंधन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रविनाथ रमन ने यह जानकारी दी है कि देवस्थानम बोर्ड द्वारा श्री यमुनोत्री धाम एवं गंगोत्री धाम में न्यासियोंध्

कोरोना लाॅकडाउन काल में उत्कृष्ठ सेवा के लिए पत्रकार वीरेंद्र दत्त गैरोला सम्मानित

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  देहरादून। अपने सपने एनजीओ ने कोरोना लाॅकडाउन काल में अपनी उत्कृष्ठ सेवा के लिए वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र दत्त गैरोला को सम्मानित किया है। अपने सपने एनजीओ के अध्यक्ष अरूण कुमार यादव ने वीरेंद्र दत्त गैरोला को प्रशस्तिपत्र देकर सम्मानित किया। उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र दत्त गैरोला गढ़ संवेदना (हि.सा.) समाचार पत्र और गढ़ संवेदना डाॅट काॅम न्यूज पोर्टल व गढ़ संवेदना डाॅट पेज न्यूज पोर्टल के संपादक होने के साथ ही दैनिक वीर अर्जुन समाचार पत्र व आजखबर न्यूज ऐजेंसी देहरादून के वरिष्ठ संवाददाता हैं। राजधानी देहरादून समेत विभिन्न स्थानों से प्रकाशित समाचार पत्र और न्यूज पोर्टल आजखबर समाचार ऐजेंसी की सेवाएं ले रहे हैं। पूरे कोरोना लाॅकडाउन काल में श्री गैरोला द्वारा ऐजेंसी से एक दिन भी अवकाश नहीं लिया गया। कोरोना के प्रति जनजागरूकता फैलाने के अलावा कोरोना से संबंधित छोटी-बड़ी संपूर्ण रिर्पोिर्टंग उनके द्वारा की जा रही है। इससे पूर्व वे अमर उजाला देहरादून व पंचकूला हरियाणा और दैनिक जागरण विकासनगर देहरादून में बतौर सब एडिटर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वे दैनिक बदरीविशाल देहरादून और सीमांत वार

गूगल नवलेखा का रिवार्ड फार्म, क्लिक कर करें आवेदन

नवलेखा टीम आपको इस कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने के आमंत्रित करती है, आप भी अधिक से अधिक आर्टिकल क्रिएट कर इस रिवार्ड  प्रोग्राम में भाग ले सकते है, अधिक जानकारी के लिए   navlekha-support@google.com    पर मेल लिखे या नवलेखा टीम से संपर्क करें। हम इस कॉन्टेस्ट में आपकी भागीदारी के लिए तत्पर हैं। अपनी भागीदारी की पुष्टि करने के लिए, कृपया इस लिंक पर रजिस्टर करें। https://docs.google.com/forms/ d/e/ 1FAIpQLScmrCVAQSZrwD0tHYVdDAKD SbjFgSTPcmCuqj9kgpF9utw4ZA/ viewform

गूगल नवलेखा की गढ़ संवेदना डाॅट पेज वेबसाइट को सर्वाधिक खबरों के लिए प्लैटिनम रिवार्ड 

देहरादून। गूगल नवलेखा की गढ़संवेदना डाॅट पेज वेबसाइट को सर्वाधिक खबरों के लिए दिसंबर 2019 में प्लैटिनम रिवार्ड के लिए चुना गया है। इसके अलावा नवंबर 2019 के लिए इस वेबसाइट को गोल्डन रिवार्ड के लिए चुना गया है। गूगल नवलेखा द्वारा आॅफ लाइन पब्लिसरों को आॅन लाइन करने की दिशा में और क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।   इसी  कड़ी में महीने में नवलेखा वेबसाइट में 300 आर्टिकल डालने के लिए सिल्वर रिवार्ड, 500 आर्टिकल डालने पर गोल्डन रिवार्ड और 700 आर्टिकल डालने पर प्लैटिनम रिवार्ड दिया जा रहा है। गूगल नवलेखा की गढ़संवेदना डाॅट पेज वेबसाइट को 700 से अधिक खबरों के लिए दिसंबर 2019 में प्लैटिनम रिवार्ड और नवंबर 2019 में 500 से अधिक समाचार डालने के लिए गोल्डन रिवार्ड के लिए चुना गया है। इस रिवार्ड की घोषणा हाल ही में देहरादून में आयोजित गूगल नवलेखा वेबसाइटों के संपादकों व प्रकाशकों की कार्यशाला के दौरान गूगल की सीनियर मैनेजर टेªनिंग गिरिजा द्वारा की गई। इस प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रकाशकोें को आॅन लाइन संबंधी कई बारीकियों के बारे में बताया गया। इस प्रशिक्षण कार्यशाला में

‘मेरा थैला मेरी शान’ का संकल्प, प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि संवर्द्धन होः स्वामी चिदानन्द सरस्वती

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ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में जिओ टीवी प्रतिनिधि बालाजी अय्यर और विशाल तथा थैला आन्दोलन के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रहे स्वामी सहजानन्द जी दर्शनार्थ आये। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज से भेंट वार्ता कर दिव्य गंगा आरती में सहभाग किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने थैला आन्दोलन को विस्तार देने हेतु विस्तृत चर्चा करते हुये कहा कि लोग आजकल अपनी फटी पैंट को फैशन समझते हैं परन्तु अब समय आ गया है कि पर्यावरण संरक्षण के लिये थैला हाथ में पकड़ने को फैशन बनायें। जिस दिन लोग ‘मेरा थैला मेरी शान’ समझने लगेंगे उस दिन प्लास्टिक के उपयोग में निश्चित रूप से कमी आयेगी। साथ ही पुराने कपड़ों का उपयोग होगा और महिलाओं को रोजगार मिलेगा। उन्होंने कहा कि ‘ईको फें्रडली कल्चर’ को अपनाकर ही हम अपनी भावी पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य दे सकते हंै।जिओ टीवी के प्रतिनिधि श्री बालाजी अय्यर और श्री विशाल जी के साथ चर्चा करते हुये स्वामी जी ने कहा कि जिओ नेटवर्क के माध्यम से लोगों ने पूरी दुनिया तक अपनी पहंुच बनायी है। जिओ का सही उपयोग किया जाये तो जीवन में विलक्षण परिव

शंख बजाने से होता है खगोलीय ऊर्जा का उत्सर्जन,जो करता है ऊर्जा व शक्ति का संचार

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देहरादून । शुभ कार्य में इसे बेहद शुभ माना जाता है। चाहे वो पूजा पाठ हो या शादी ब्याह, हर जगह शंख का उपयोग किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते है कि इन शंख की मदद से आपको अपना मनचाहा प्यार भी मिलेगा और पैसा भी, बस जरूरत है सही शंख चुनने की। जानिए किस तरह का शंख करेगा आपकी मदद मां लक्ष्मी के हाथों में सुशोभित शंख दक्षिणावर्ती शंख है। इसे लक्ष्मी शंख भी कहा जाता है। इस शंख का मुंह दाहिने ओर खुलता है, जबकि आमतौर पर मिलने वाले शंख का मुंह बायीं ओर खुलता है। दक्षिणावर्ती शंख को मां लक्ष्मी के सामने लाल कपड़े पर रखकर पूजा करनी चाहिए।  ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का वास होता है। अगर आपके प्रेमी जीवन में या जीवनसाथी से अक्सर आपकी अनबन रहती है तो आपके लिए हीरा शंख काफी फायदेमंद रहेगा।  ऐसा माना जाता है कि इस शंख से शुक्र ग्रह से संबंधिक दोष दूर होता है और शुक्र ग्रह को प्यार का ग्रह माना जाता है। जिससे प्रेमी जीवन की सारी बाधाएं भी दूर होती हैं। 1: ~ शंख की आकृति और पृथ्वी की संरचना समान है ।नासा के अनुसार – शंख बजाने से खगोलीय ऊर्जा का उत्सर्जन होता है जो जीवाणु का नाश कर लोगो को ऊर्जा व शक्त

खूबसूरती और रोमांच का अदभुत संगम डोडीताल

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उत्तरकाशी। नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर डोडीताल ट्रैक पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। चारधाम आने वाले यात्री भी डोडीताल के प्राकृतिक सौंदर्य का लुफ्त उठा रहे है। पर्यटकों को यहां सुंदर झील, दुर्लभ प्रजाति की मछलियां और बर्फीले बुग्याल देखने को मिल रहे है। ट्रैकिंग का शौक रखने वालों के लिए डोडीताल किसी जन्नत से कम नहीं है। उत्तरकाशी जिले में खूबसूरती और रोमांच का अदभुत संगम डोडीताल हिमालय की गोद में बसा छोटा सा हिल स्टेशन है। जो समुद्र तल से 3024 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। उत्तरकाशी से डोडीताल की दूरी 40 किलोमीटर है और यहां पहुंचने के लिए पर्यटकों को 22 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है। पर्यटक इस ट्रैकिंग में अगोड़ा गांव में एक दिन का स्टे करने के बाद माझी में कैंपिग कर सकते है। डोडी ताल उत्तराखंड के उत्तरकाशी में गंगोत्री सड़क मार्ग से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गंगोरी नामक स्थल से अगोड़ा के रास्ते पर लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर 3307 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हैं। स्वच्छ व निर्मल जल से परिपूर्ण यह झील चारों ओर से घने वनों से लदा हुआ है। हिमालय क्षेत्र की प्रसिद्ध टाउट मछलिय

गूगल नवलेखा का प्रकाशकों को आॅफ लाइन से आॅनलाइन करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम

गूगल कीे टीम द्वारा नवलेखा प्रोजेक्ट के तहत समाचार पत्र, पत्रिकाओं के प्रकाशकों  को आफलाइन से आनलाइन किया गया है। आनलाइन होने से ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक अपने समाचार पत्र की पहुंच बनाने में काफी मदद मिली। जो लोग हमारे समाचार पत्र को नहीं जानते थे या जिन तक हमारा समाचार पत्र नहीं पहुंच पाता था वे भी इसे जानने लगे हैं और गढ़ संवेदना डाॅट पेज की वेबसाइट पर क्लिक कर समाचार, फीचर और लेख पढ़ते हैं। आॅनलाइन होने से पाठको का काफी प्यार मिल रहा है। मुझे अपने एक मित्र के माध्यम से इसकी जानकारी मिली थी कि गूगल की टीम द्वारा नवलेखा प्रोजेक्ट के तहत समाचार पत्र/पत्रिकाओं के प्रकाशकों को आॅनलाइन करने के उद्देश्य से आरएनआई नंबर के आधार पर वेबसाइट बनाई जा रही हैं और वह भी निशुल्क। मैं अपने समाचार पत्र गढ़ संवेदना को आॅनलाइन करने को काफी इच्छुक था, इस पर मैंने गूगल नवलेखा टीम के अनुभवी साथी  मनन आनंद से संपर्क किया और उनसे अपनी वेबसाइट बनाने का आग्रह किया। इस पर मनन तत्काल मेरे पास पहुंचे और मेरी गढ़ संवेदना डाॅट पेज नाम से वेबसाइट बनाई। तब से मैं अपनी इस वेबसाइट पर नियमित रूप से समाचार, फीचर और लेख प्रक

गढ़वाल के 52 गढ़

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देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज । गढवाल को कभी 52 गढ़ों का देश कहा जाता था। तब गढ़वाल में 52 राजाओं का आधिपत्य था। उनके अलग अलग राज्य थे और वे स्वतंत्र थे। इन 52 गढ़ों के अलावा भी कुछ छोटे छोटे गढ़ थे जो सरदार या थोकदारों (तत्कालीन पदवी) के अधीन थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इनमें से कुछ का जिक्र किया था। ह्वेनसांग छठी शताब्दी में भारत में आया था। इन राजाओं के बीच आपस में लड़ाई में चलती रहती थी। माना जाता है कि नौवीं शताब्दी लगभग 250 वर्षों तक इन गढ़ों की स्थिति बनी रही लेकिन बाद में इनके बीच आपसी लड़ाई का पवांर वंश के राजाओं ने लाभ उठाया और 15वीं सदी तक इन गढ़ों के राजा परास्त होकर पवांर वंश के अधीन हो गये। इसके लिये पवांर वंश के राजा अजयपाल सिंह जिम्मेदार थे जिन्होंने तमाम राजाओं को परास्त करके गढ़वाल का नक्शा एक कर दिया था। पहला-  नागपुर गढ़ : यह जौनपुर परगना में था। यहां नागदेवता का मंदिर है। यहां का अंतिम राजा भजनसिंह हुआ था। दूसरा-  कोल्ली गढ़ : यह बछवाण बिष्ट जाति के लोगों का गढ़ था। तीसरा-  रवाणगढ़ : यह बद्रीनाथ के मार्ग में पड़ता है और रवाणीजाति का होने के कारण इसका नाम रवाणगढ़ पड़ा

कंडाली की देश-विदेश में भारी मांग

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देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज। कंडाली उत्‍तराखंड के पहाड़ी जिलों में पायी जाने वाली एक ऐसी घास है, जिसे छूने से लोग डरते हैं। वहीं, दूसरी ओर यह स्‍वाद से लेकर दवा और आय का भी स्रोत है। इसे स्‍थानी भाषा में कंडाली के नाम से जाना जाता है। अगर ये घास गलती से छू जाए तो उस जगह झनझनाहट शुरू हो जाती है, लेकिन यह घास कई गुणों को समेटे हुए हैं। इससे बने साग का स्‍वाद लाजवाब है, वहीं इस घास बनी चप्‍पल, कंबल, जैकेट से लोग अपनी आय भी बढ़ रहे हैं। आइये जानते औषधीय गुणों से भरपूर इस घास के बारे में। कंडाली से बना साग का स्‍वाद है लाजवाब पहाड़ के व्यंजन जहां स्वाद में भरपूर हैं वहीं बेहद पौष्टिक भी। इस लाजवाब खाने का स्वाद हर किसी की जुबां पर हमेशा रहता है। इसी को देखते हुए अब पहाड़ी खानों की मैदानी क्षेत्रों में भी काफी मांग बढ़ गई है। इसमें से एक है कंडाली का साग। साग जो खाने में इतना स्वादिष्ट कि आज भी भुलाये नहीं भूलता। कंडाली के साग के साथ झंगोरे (एक प्रकार का पहाड़ी भात) का स्‍वाद लेंगे तो आप हमेशा याद रखेंगे। इसलिए कहते हैं इसे बिच्‍छु घास अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्

मनोरम और सुंदर नेलांग घाटी खींच लाती है पर्यटकों को

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उत्तरकाशी। भारत में कई ऐसी जगह हैं जो पर्यटन के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं. तेलांग घाटी उन्हीं जगहों में से एक है। 17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था। पांच सौ मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा मार्ग (गर्तांगली) भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है। सन् 1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर व भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आवागमन करते थे। भारत-चीन युद्ध के बाद दस वर्षों तक सेना ने भी इस मार्ग का उपयोग किया। उत्तरकाशी जिले में स्थित नेलांग घाटी बेहद मनोरम और सुंदर है. इसकी ख़ूबसूरती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस जगह के प्रेमी विदेशी भी हैं. इस जगह की कई और ख़ासियत हैं, जिन्हें जान कर आप भी यहां घूमना पसंद करेंगे।  नेलांग घाटी की ऊंचाई समुद्र तट से 11,000 फीट ऊंची है, इस वजह से यहां साल भर बर्फ को देखा जा सकता है।1962 में भारत-चीन के बीच लड़ाई के बाद घाटी को हमेशा के लिए पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया

दून के कक्षा छह के 11 वर्षीय अद्वैत ने किया हवा से चलने वाली बाइक का अविष्कार

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देहरादून। देहरादून के 11 वर्षीय अद्वैत ने हवा से चलने वाली बाइक का अविष्कार किया है। सेंट कबीर अकादमी में कक्षा छह में पढ़ रहे अद्वैत ने इस बाइक की जानकारी साझा की। उन्होंने अपनी बाइक का नाम अद्वैत-ओटू रखा है। हर्रावाला निवासी अद्वैत के पिता आदेश क्षेत्री ने बताया कि वह अपना यूट्यूब चैनल भी चलाते हैं। अद्वैत ने बताया कि उनकी यह बाइक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को समर्पित है। अद्वैत बताते हैं कि एक दिन वह गुब्बारे में हवा भर रहे थे। अचानक गुब्बारा हाथ से छूट गया और काफी ऊपर तक चला गया। यह देखकर अद्वैत के दिमाग में विचार आया कि जब हवा के दबाव से गुब्बारा उड़ सकता है तो बाइक क्यों नहीं चल सकती। इसके बाद वह अपने आइडिया को साकार करने में जुट गए।  अद्वैत के अनुसार यह बाइक बनाने में उन्हें 13 माह लगे। इस कार्य में पिता का शौक भी उनके काफी काम आया। अद्वैत के पिता आदेश का वैसे तो कंसट्रक्शन का बिजनेस है। लेकिन, उन्हें किशोरावस्था से ही बाइक मॉडीफाई करने का शौक है। अद्वैत का आइडिया सुनकर वह भी उसके साथ जुट गए। तकनीकी कार्यों के साथ उन्होंने बाइक के लिए जरूरी पार्ट एकत्र करने

गुरु द्रोणाचार्य की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें यहांं दिए थे दर्शन

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देहरादून।  गुरु द्रोणाचार्य की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें यहांं टपकेश्वर में दर्शन दिए थे। गुरु द्रोण के अनुरोध पर ही भगवान शिव जगत कल्याण को लिंग के रूप में स्थापित हो गए। इसके बाद द्रोणाचार्य ने शिव की पूजा की और अश्वत्थामा का जन्म हुआ। अश्वत्थामा ने मंदिर की गुफा में छह माह एक पांव पर खड़े होकर शिव की तपस्या की और जब भगवान प्रकट हुए तो उनसे दूध मांगा। इस पर प्रभु ने शिवलिंग के ऊपर स्थित चट्टान में गऊ स्तन बना दिए और दूध की धार बहने लगी। तब भगवान शिव का नाम दूधेश्वर था। कलियुग में दूध की धार जल में परिवर्तित हो गई, जो निरंतर शिवलिंग पर गिर रही है। इस कारण नाम टपकेश्वर पड़ गया। महादेव ने यहीं देवताओं को देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे। देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु और पर्यटक भगवान टपकेश्वर के दर्शन को यहां आते हैं। पूरे श्रावण मास यहां मेले जैसा माहौल रहता है। मान्यता है कि भांग, बिल्वपत्र, धतूरा, दूध आदि से महादेव का अभिषेक करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है। टपकेश्‍वर महादेव मंदिर एक लोकप्रिय गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह देहरादून शहर के बस स्टै