दून विश्वविद्यालय में सरकारी हस्तक्षेप पर जताई चिंता

देहरादून। आरटीआई क्लब ने दून विश्वविद्यालय में सरकारी हस्तक्षेप बंद किए जाने की मांग की है। आरटीआई क्लब के सदस्यों का कहना है कि दून विश्वविद्यालय अपने नियम और कानूनों से संचालित होना चाहिए। क्लब के अध्यक्ष डॉ. बी पी मैथानी ने कहा कि विश्वविद्यालय के अपने नियम और कानून हैं, उसी के अनुसार विश्वविद्यालय का संचालन होना चाहिए। 

दून विश्वविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति तो काफी समय से विवादों में घिरी रही है, यद्यपि उस पर न सरकार और न ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने कोई संज्ञान लिया, बल्कि बीते 3 दिसंबर को हाईकोर्ट द्वारा दून विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाया गया। इसके पीछे हाईकोर्ट द्वारा कुलपति की नियम विरुद्ध नियुक्ति का हवाला दिया गया था। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड सरकार ने दून विश्वविद्यालय में कुलपति के रिक्त पद को भरने के लिए 17 अक्टूबर 2017 को विज्ञापन प्रकाशित किया था उसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के मानकों के अनुकूल कुलपति की अहर्ताओं में अन्य योग्यताओं के अलावा अभ्यर्थी का विश्वविद्यालय तंत्र में प्रोफेसर के पद पर 10 वर्ष का अनुभव होना अनिवार्य था। जबकि बर्खास्त किए गए कुलपति डॉ. चंद्रशेखर नौटियाल का विश्वविद्यालय तंत्र में प्रोफेसर के पद पर कार्य करने का कोई अनुभव नहीं था। उसके बावजूद डॉ. नौटियाल का चयन विश्वविद्यालय कुलपति के तौर पर किया गया। वांछित अहर्ता को दर्शाने के लिए उन्होंने चतुराई से अपने बायोडाटा में मुख्य वैज्ञानिक के आगे आउटस्टैंडिंग प्रोफेसर जोड़ दिया, जो गलत था। उनके संस्थान में इस तरह के पदनाम नहीं है और न ही वहां कोई इससे संबंधित शिक्षण प्रशिक्षण का कार्य होता है। उनके इस आचरण पद की गरिमा के विपरीत होने के कारण उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यहां तक कहा कि डॉ. नौटियाल ने दून विश्वविद्यालय में कुलपति का पद छल करके हासिल किया है। दरअसल, आरटीआई क्लब के सदस्यों का कहना है कि शिक्षण संस्थाओं में राजनीतिक हस्तक्षेप से शिक्षा के स्तर में आ रही गिरावट है। उन्होंने कहा कि सरकार ने अभी तक दून विश्वविद्यालय में कार्यवाहक कुलपति की नियुक्ति भी नहीं की है। जिससे शैक्षणिक कार्य प्रभावित हो रहा है. सरकार स्थाई कुलपति की नियुक्ति होने तक कार्यवाहक कुलपति की नियुक्ति भी करे।

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