भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के लिए वन प्रमाणीकरण प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित


 

देहरादून। वन अनुसंधान संस्थान देहरादून के वन संवर्धन एवं प्रबंधन प्रभाग द्वारा राज्य के वन विभागों के अधिकारियों के लिए एक प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन “भारतीय संदर्भ में वन प्रमाणन” विषय पर किया गया। वन प्रमाणन वनों की निगरानी, काष्ठ और लुगदी उत्पादों तथा गैर-काष्ठ उत्पादों की ट्रेसिंग और लेबलिंग का एक बाजार-तंत्र है, जो एक स्वतंत्र संस्था द्वारा प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया है जिससे यह पता चलता है कि संबन्धित वन क्षेत्र एक परिभाषित मानक के संदर्भ में प्रबंधित है। वन प्रमाणन दो अलग-अलग प्रक्रियाओं जैसे वन प्रबंधन इकाई प्रमाणन (एफएमयू) और चेन ऑफ कस्टडी सर्टिफिकेशन (सीओसी) को संदर्भित करता है। 

वन प्रबंधन प्रमाणन एक ऐसी प्रक्रिया है जो यह सत्यापित करती है कि वन, वृक्षारोपण का एक क्षेत्र जहां से लकड़ी, फाइबर और अन्य गैर-काष्ठ वन उत्पाद निकाले जाते हैं और जो एक परिभाषित मानक हेतु प्रबंधित होते है। सीओसी प्रमाणीकरण केवल प्रमाणित वन से बिक्री स्थल तक वन उत्पादों पर नजर रखने की प्रक्रिया है जिससे कि यह सुनिश्चित हो सके कि उत्पाद प्रमाणित वन क्षेत्र से लाए गये है। वन प्रमाणन का विषय सतत वन प्रबंधन के तहत तेजी से विकसित होने से संबन्धित है, और अधिकांश वन अधिकारियों को इसके बारे में पर्याप्त ज्ञान एवं अनुभव नहीं है, और इस प्रकार वे इसे अपने क्षेत्र में लागू करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। 

इन विषयों से प्रतिभागियों को अवगत कराने के लिए भारतीय प्रबंधन संस्थान, भोपालय हस्तशिल्प पर भारतीय निर्यात प्रोत्साहन परिषद, नई दिल्लीय ग्रीन इनिशिएटिव सर्टिफिकेशन एंड इंस्पेक्शन एजेंसी (जीआईसीआईए), नोएडाय और मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के राज्य वन विभागों से आमंत्रित विशेषज्ञों से व्याख्यान और संवादात्मक चर्चा की व्यवस्था की गई। प्रतिभागियों के लिए सहारनपुर में राज्य वन डिपो के टिम्बर डिपो में आधे दिन के दौरे का कार्यक्रम भी रखा गया। वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून के बोर्ड रूम में 16 जनवरी 2020 को कार्यशाला का उद्घाटन किया गया। प्रशिक्षण का उद्घाटन भा.वा.अ.शि.प. के महानिदेशक डॉ. एस.सी. गैरोला ने किया। उन्होंने कहा कि भारत में लंबे समय से स्थायी वन प्रबंधन के सिद्धांतों का पालन किया जा रहा है। उन्होंने वन प्रमाणीकरण के महत्व पर प्रकाश डाला और जोर दिया कि वन अधिकारियों द्वारा इस तंत्र की उचित समझ और प्रयोग से जंगल की गुणवत्ता में सुधार होगा और वन उपज की मात्रा बढ़ेगी और टिकाऊ वन प्रबंधन सुनिश्चित होगा। भारतीय प्रबंधन संस्थान, भोपाल के डॉ. एम. डी. ओमप्रकाश ने मानदंड और संकेतक के आधार पर वन प्रमाणीकरण की प्रक्रिया को समझाया। उन्होंने यह भी कहा कि भारत जैसे लकड़ी आयात करने वाले देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे कच्चे माल का आयात निरंतर प्रबंधित जंगलों से करेंय तभी उनसे तैयार उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बिक्री योग्य होंगे। उन्होंने यह भी बताया कि गैर-काष्ठ वन उत्पादों के प्रमाणन पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि भारत गैर-काष्ठ वन उत्पादों का एक प्रमुख निर्यातक है। डॉ. एस.डी. शर्मा, उप महानिदेशक (अनुसंधान), भा.वा.अ.शि.प. ने भारत की नई वन नीति में, जो मसौदा चरण में है, वन प्रमाणीकरण पर कार्य करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने व्यक्त किया कि कई विकसित देशों और कुछ विकासशील देशों में वन प्रमाणीकरण की अच्छी व्यवस्था है और वे कानूनी रूप से दोहन किए गए लकड़ी का निर्यात करते हैं जिनका आर्थिक, पर्यावरण और सामाजिक दृष्टि से मूल्य हैं। हमें उन देशों से शिक्षा ग्रहण करने की जरूरत है, ताकि दूसरे देशों को लकड़ी और गैर-काष्ठ वन उत्पादों के निर्यात की इस अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकता को पूरा किया जा सके। 

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