जैव ईंधन उत्पादन-क्षमता, सम्भावनाएं व प्रौद्योगिकी’ पर संगोष्ठी आयोजित
वर्तमान में मुख्यतः गन्ना उद्योग से प्राप्त होने वाले उप-उत्पाद अथवा अवशिष्ट ‘शीरे’ से ही इथेनॉल का उत्पादन किया जाता है। यद्यपि इस संगोष्ठी का मुख्य विषय ‘गन्ने’ के उप-उत्पाद शीरे से इथेनॉल उत्पादन पर केंद्रित है तथापि इसमें अन्य विभिन्न स्रोतों जैसे कि धान, गेहूं तथा कपास की भूसी, केले के डंठल, सड़े हुए आलू, सड़े हुये अनाज के साथ-साथ अन्य न खाए जाने वाले पदार्थों से इथेनॉल के उत्पादन की सम्भावनाओं पर भी चर्चा की गई। इस संगोष्ठी का उद्घाटन प्रो. (डॉ). आर. के. खंडाल, प्रेसीडेन्ट, इण्डिया ग्लाकोल्स लिमिटेड ने किया। डॉ. राम मूर्ति सिंह, अध्यक्ष, निस्टा ने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस योजना के अधीन लगाए जा रहे नवीन यूनिटों से ही इथेनॉल की आपूर्ति की जाए। इथेनॉल की सम्भावित बढती मांग हमारे इथेनॉल संयंत्रो के भविष्य के लिए सकारात्मक है। डॉ. अंजन रे, निदेशक, सीएसआईआर-आईआईपी, देहरादून ने वीडियो उद्बोधन के माध्यम से सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया। डॉ. अमर जैन, डॉ. श्रीप्रकाश नाइक नवारे, एम.डी.,नेशनल फेडरेशन आफ कोऑपरेटिव शूगर फैक्ट्रीज लिमिटेड, नई दिल्ली, डॉ. टी. भास्कर, डॉ. एस. वी. पाटिल, वसन्त दादा सुगर रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूणे, डॉ. एम. एस. सुंदरम्, एम.डी., जे पी मुखर्जी एण्ड एसोसिएट पूणे, डॉ. रिन्टू बनर्जी, आईआईटी, खड़गपुर ने विषय से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर प्रस्तुतिकरण किया। विपिन बिहारी, महासचिव, निस्टा ने सेमिनार में उपस्थित अतिथियों एवं प्रतिनिधियों को को धन्यवाद ज्ञापित किया।