महज यादों में ही सिमट कर रह गया अरसा, यह न केवल एक मिठाई बल्कि अपनत्व, स्नेह, प्यार का प्रतीक भी 


देहरादून, (गढ़ संवेदना)। अरसे न केवल एक मिठाई होती है बल्कि ये अपनत्व, स्नेह, प्यार का प्रतीक भी है। चावल, गुड़ और तेल से तैयार अरसे लंबे समय तक खराब नहीं होते हैं। खानें में इनका स्वाद आज भी बेजोड़ है। अरसे को बांटना पहाड़ के लोक में शुभ शगुन माना जाता है। गढ़वाल क्षेत्र में शादी-विवाह के खास मौकों पर कलेऊ देने की अनूठी परंपरा है। कलेऊ में विभिन्न प्रकार की मिठाइयां होती हैं, जिन्हें विदाई के अवसर पर नाते-रिश्तेदारों को दिया जाता है। इनमें सबसे लोकप्रिय है अरसा। अरसा की खास बात यह होती है कि इसे एक बार मुंह में रख लें, तो यह मुंह में घुल जाता है। साथ ही इसे बनाकर काफी समय तक स्टोर भी किया जा सकता है।
 अरसे पहाड़ की असली मिठाई है। न कोई मिलावट न दिखावा, यह विशुद्ध पहाडी समौण है। बरसों से पर्वतीय क्षेत्र के गांवों में रहने वाले लोग अपनी बेटियों को ससुराल जाते समय मिठाई के रूप मे अरसे को समौण देते हैं। ये अरसे न केवल एक मिठाई होती है अपितु ये अपनत्व, स्नेह, प्यार का प्रतीक भी होती है। चावल, भेली और तेल से तैयार अरसे लंबे समय तक खराब भी नहीं होते हैं। खानें में इनका स्वाद आज भी बेजोड़ है। अरसे को बांटना पहाड़ के लोक में शुभ शगुन माना जाता है।
शादी ब्याह सहित अन्य खुशी के मौके पर भी ये परम्परागत मिठाई बरसों से पहाड़ में बनाई जाती है। पहले इस मिठाई को ले जाने के लिए रिंगाल का बना हथकंडी बनाया जाता था, जिसमें मालू व तिमला के पत्ते को भिमल, सेब की रस्सी से बांधकर रिश्तेदारों को भेजा जाता था। बदलते दौर में जो अब महज यादों में ही सिमट कर रह गया है। भले ही आज लोग मंहगी से मंहगी बंद डिब्बे में पैक्ड मिठाई को एक दूसरे को दे रहे हो। लेकिन जो स्वाद, मिठास और अपनत्व मेरे पहाड़ के इन अरसों में है वो और कहां। अरसा बनाने के लिए चावलों को 6-8 घंटे पहले भिगो दें। तत्पश्चात चावलों को कूट लें और उसे आटे के समान छानकर अलग रख लें। फिर गुड़ की दो तार की चाश्नी बनाएं और उसमें चावल केइस आटे को गूंथ लें और अब उससे छोटी-छोटी लोइयां बनाकर पकोड़ी की तरह गरम तेल में तलें। जब इनका रंग गुलाबी हो जाये तो उन्हें अलग से निकाल लें। घी के साथ घर आए मेहमानों को परोसें।
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