सामाजिक दूरी के बीच भावनात्मक संपर्क बनाएंः कमलेश डी पटेल

देहरादून। मौजूदा कोविड-19 की महामारी ने हमारे शब्द-भंडार में कई नए शब्द जोड़ दिए हैं। लेकिन ये केवल शब्द मात्र नहीं हैं बल्कि वे अपने साथ एक नई जीवनशैली अपनाने का भाव भी साथ लेकर आए हैं। लॉक-डाउन (ताला बंदी)। सेल्फ आइसोलेशन (खुद को औरों से अलग रखना)। क्वारंटीन (संगरोध)। ठहर जाना। सोशल डिसटैंसिंग (सामाजिक दूरी बनाना)। सावधान रहना। यात्रा पर रोक। घर से दफ्तर का कार्य करना (वर्क फ्रॉम होम)। स्कूल ऐट होम (घर से ही स्कूल की पढ़ाई)। यह सब कुछ ही हफ्तों में हो गया। हम सब एक ही नाव में सवार हैं और यथासंभव सावधानी बरतते हुए खुद को और अपने परिवारों को इस परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार कर रहे हैं। हम बाहरी दुनिया से अपने संपर्क को कम से कम करते जा रहे हैं। हमारा भौतिक संपर्क जीवित रहने के लिए बेहद जरूरी जरूरतों तक ही सीमित है। उससे अधिक कुछ करना मूर्खता है। महत्वपूर्ण यह है कि यह सब हम कैसे करते हैं। दैनिक जीवनचर्या में हमारा संतुलित और दूसरों की फिक्र से भरा मनोभाव दूसरों तक पहुँचता है। कोविड-19 जाति, लिंग, संस्कृति या राष्ट्रीयता में भेदभाव नहीं करता। इसलिए हमें सबके प्रति उदार और करुणावान बने रहना चाहिए।

कमलेश डी पटेल (दाजी का कहना है कि सामाजिक दूरी को समझने के लिए आइए इन दो शब्दों, ‘सामाजिक’ और ‘दूरी’ को समझें। सामाजिक का अर्थ है साहचर्य और मित्रता। मनुष्य सामाजिक प्राणी है और हम समुदायों में ही रहते हैं। दूरी का अर्थ है अलग रहना। सरल शब्दों में सामाजिक दूरी स्वयं और दूसरों के बीच एक फासला बनाए रखना है, चाहे वे बीमारी से प्रभावित हों या नहीं। लेकिन क्या हमें वास्तव में सामाजिक रूप से दूरी रखने को कहा जा रहा है? बिलकुल नहीं। हाँ, भौतिक रूप से दूरी रखनी है, किन्तु क्या इसका यह अर्थ है कि हमारा सामाजिक ढाँचा ही बिखर जाए? भौतिक रूप से दूर रहते हुए हमें स्वयं से पूछना है कि कहीं हम खुद को भावनात्मक रूप से भी तो दूर नहीं कर रहे हैं? हमें किसी भी तरह इन दोनों बातों को आपस में गड्ड-मड्ड होने से बचाना है। हम हमेशा भौतिक दूरियों के साथ रहते आए हैं। पति-पत्नी अलग-अलग महाद्वीपों में कार्य करते हैं और परिवार पूरे संसार में फैले हुए हैं। आज हम तकनीक के माध्यम से सामाजिक और भावनात्मक संपर्क बनाए रखते हैं और हमारी जीवनशैली लम्बे समय से ऐसी ही है। तो आज की परिस्थिति में इतना अलग क्या है? शायद ऐसा इसलिए है कि हम अपने प्रियजनों की परवाह करते हैं और चिंतित हैं कि उन्हें अपने सामने सशरीर कब देखेंगे। हम संसार के दूसरे सिरे पर रहने वाले अपने माता-पिता की सहायता करने या फिर किसी प्रिय मित्र को व्यक्तिगत रूप से सांत्वना देने में अपने आपको असमर्थ पाते हैं। कारण जो भी हो, हममें से कई को अभी कुछ बिलकुल अलग-सा महसूस हो रहा है। सवाल यह उठता है कि हम भावनात्मक रूप से दूर हुए बिना सामाजिक दूरी कैसे बनाए रखें? क्या हम इस परिस्थिति का लाभ उठाते हुए अपने भावनात्मक बंधनों को और भी विकसित करना सीख सकते हैं?

Popular posts from this blog

व्यंजन प्रतियोगिता में पूजा, टाई एंड डाई में सोनाक्षी और रंगोली में काजल रहीं विजेता

नेशनल एचीवर रिकॉग्नेशन फोरम ने विशिष्ट प्रतिभाओं को किया सम्मानित

शिक्षा अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने को एसएसपी को भेजा पत्र, DG शिक्षा से की विभागीय कार्रवाई की मांग