संघ और भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेई के भाषण से नेहरू जी के इतिहास की प्रेरणा लेंः धीरेंद्र प्रताप

देहरादून। नेहरू गांधी परिवार पर सदैव आक्रामक रवैया अपनाने वाले संघ और भाजपा के कार्यकर्ता आज स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू की 56 वी पुण्यतिथि के अवसर पर आज तक के संघ और भाजपा के इतिहास के सबसे बड़े नेता पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई का नेहरू जी की मृत्यु पर दिया गया संबोधन पढ़ें और याद करें अटल बिहारी वाजपेई जी नेहरू जी का कितना सम्मान करते थे। नेहरू का भूत बड़ा मजबूत। कारण आज के नेता नेहरू के सामने बौने दिखाई देते हैं।

27 मई 1964 के दिन जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु हो गयी थी। संसद में भारतीय जनसंघ के नौजवान नेता, अटल बिहारी वाजपेयी ने 29 मई, 1964 को संसद में उन्हें श्रद्धांजलि दी। उनका भाषण प्रस्तुत हैयह भाषण संसद के रिकार्ड का हिस्सा है। राज्यसभा की 29 मई 1964 की कार्यवाही में छपा है।

एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूँगा हो गया, एक लौ थी जो अनन्त में विलीन हो गई। सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से रहित होगा, गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूँज और गुलाब की गंध थी। लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अँधेरे से लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर, एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया। मृत्यु ध्रुव है, शरीर नश्वर है। कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आए, उसका नाश निश्चित था। लेकिन क्या यह जरूरी था कि मौत इतनी चोरी छिपे आती ? जब संगी-साथी सोए पड़े थे, जब पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की एक अमूल्य निधि लुट गई। भारत माता आज शोकमग् है, उसका सबसे लाड़ला राजकुमार खो गया। मानवता आज खिन्नमना है उसका पुजारी सो गया। शांति आज अशांत है, उसका रक्षक चला गया। दलितों का सहारा छूट गया। जन जन की आँख का तारा टूट गया। यवनिका पात हो गया। विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अन्तर्ध्यान हो गया। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में भगवान राम के सम्बंध में कहा है कि वे असंभवों के समन्वय थे। पंडितजी के जीवन में महाकवि के उसी कथन की एक झलक दिखाई देती है। वह शांति के पुजारी, किन्तु क्रान्ति के अग्रदूत थेय वे अहिंसा के उपासक थे, किन्तु स्वाधीनता और सम्मान की रक्षा के लिए हर हथियार से लड़ने के हिमायती थे। वे व्यक्तिगत स्वाधीनता के समर्थक थे किन्तु आर्थिक समानता लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। उन्होंने समझौता करने में किसी से भय नहीं खाया, किन्तु किसी से भयभीत होकर समझौता नहीं किया। पाकिस्तान और चीन के प्रति उनकी नीति इसी अद्भुत सम्मिश्रण की प्रतीक थी। उसमें उदारता भी थी, दृढ़ता भी थी। यह दुर्भाग्य है कि इस उदारता को दुर्बलता समझा गया, जबकि कुछ लोगों ने उनकी दृढ़ता को हठवादिता समझा। मुझे याद है, चीनी आक्रमण के दिनों में जब हमारे पश्चिमी मित्र इस बात का प्रयत्न कर रहे थे कि हम कश्मीर के प्रश्न पर पाकिस्तान से कोई समझौता कर लें तब एक दिन मैंने उन्हें बड़ा क्रुद्ध पाया। जब उनसे कहा गया कि कश्मीर के प्रश्न पर समझौता नहीं होगा तो हमें दो मोर्चों पर लड़ना पड़ेगा तो बिगड़ गए और कहने लगे कि अगर आवश्यकता पड़ेगी तो हम दोनों मोर्चों पर लड़ेंगे। किसी दबाव में आकर वे बातचीत करने के खिलाफ थे। प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप ने भारत रत्न जवाहरलाल नेहरू की 56वीं पुण्यतिथि के अवसर पर संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं से नेहरू जी की देश के लिए की गई महान सेवाओं और त्याग के बारे में संघ के सबसे बड़े नेता स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी के नेहरू जी की मृत्यु पर संसद में दिए गए संबोधन से सीख लेने की अपील की और कहां है कि संघ और भाजपा के नेता नेहरू और गांधी परिवार के संबंध में कुछ भी वक्तव्य जारी करने से पहले उनके परिवार की इस राष्ट्र के प्रति पिछले 100 साल से ज्यादा लंबे इतिहास में की गई सेवाओं का अटल बिहारी वाजपेई जी के संबोधन से संज्ञान ले उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वे महामानव थे शांति के दूत थे और संघर्ष उनके जीवन के कण-कण में था। वे सदैव हमारे ही नहीं पूरी दुनिया के प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।

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