जयंती पर याद किए गए संस्कृत पुरुष डा. वाचस्पति मैठाणी, ऑनलाइन सम्मेलन व विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित



देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज। शिक्षाविद एवं संस्कृत शिक्षा के पूर्व निदेशक संस्कृत पुरुष स्व डॉक्टर वाचस्पति मैठाणी की 71 वीं जयंती पर संस्कृत में रोजगार के अवसर विषय पर एक ऑनलाइन सम्मेलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया।  वहीं, देवभूमि प्राथमिक संस्कृत विद्यालय सारथी विहार देहरादून, मां नंदा विहार नवादा देहरादून एवं बालिका स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय सेंदुल, टिहरी गढ़वाल में श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया। वेबीनार गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल शामिल हुए। इस मौके पर उन्होंने कहा कि संस्कृत के प्रति मेरा अगाध लगाव है इसी कारण मैंने शपथ भी संस्कृत में ही ली। संस्कृत भाषा विश्व की भाषाओं की जननी है। संस्कृत भाषा से हमारी संस्कृति जिंदा रहेगी। डॉ वाचस्पति मैठाणी ने संस्कत भाषा के उत्थान के लिए जो अतलनीय कार्य किया वह चिर स्मरणीय रहेगा। संस्कत भाषा के उत्थान से ही देश का उत्थान होगा। संस्कृत भाषा से रोजगार की अपार संभावनाएं हैं इसे नकारा नहीं जा सकता। स्मृति मंच के संरक्षक पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने कहा कि डॉ वाचस्पति मैठाणी मानव नहीं बल्कि संस्कृत भाषा के उत्थान के महामानव थे ऐसे व्यक्ति के जीवन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। संस्कृत भाषा में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। संस्कत भाषा रोजगार का महा समद्र है इसमें वही पार पाएगा जो समद्र में तैरना जानेगा। कार्यक्रम के अध्यक्ष उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत भाषा के उन्नयन के लिए डॉ वाचस्पति मैठाणी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।विशिष्ट अतिथि संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष प्रो प्रेम चंद्र शास्त्री ने कहा कि संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए मैं विगत 40 वर्षों में कार्य कर रहा है। संस्कृत अकादमी संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए कार्यशील है। डॉ वाचस्पति मैठाणी के द्वारा संस्कृत के उत्थान के लिए किए गए योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।समाजसेवी  सुमित्रा धूलिया ने कहा कि कोई भी व्यक्ति कितनी भाषाएं जान ले किंतु अगर उसका चरित्र निर्माण नहीं है तो सब व्यर्थ है । संस्कृत भाषा व्यक्ति के चरित्र निर्माण की मुख्य धुरी है। दिल्ली विश्वविदयालय में गांधी भवन के निदेशक प्रो. रमेश चन्द्र भारदवाज ने नई शि शक्षा नीति में संस्क को महत्व दिया गया हैकहा कि विश्व कल्याण की भावना संस्कृत के प्रत्येक ग्रंथ का अध्ययन करने पर महसूस होती है। उन्होंने कहा कि डॉ मैठाणी ने देव भूमि उत्तराखंड में कई संस्कृत शिक्षण संस्थानों की स्थापना कर समाज को संस्कृत के प्रति लगन पैदा करने के लिए एक नई दिशा प्रदान की। कार्यक्रम का संचालन श्री बद्रीनाथ संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य विनोद प्रसाद बेंजवाल ने किया। इस अवसर पर आयुर्वेद गौरव वन औषधि विद्यापति श्रीलंका डा मायाराम उनियाल, राजघाट नई दिल्ली से प्रसिद्ध सर्वोदय विचारक विजय कुमार हांडा, उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के शोध अधिकारी डॉ हरीश गुरुरानी, उत्तराखंड संस्कृत शिक्षक प्रधानाचार्य संघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ राम भूषण बिजल्वाण, साहित्यकार एवं समाजसेवी शंभू शरण रतूड़ी, संस्कृत भारती मेरठ परिक्षेत्र की ज्योति शर्मा आदि ने डॉ वाचस्पति मैठाणी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के संरक्षक मंडल के सदस्य कैलाशपति मैठाणी ने डॉ वाचस्पति मैठाणी की 71 वी जयंती के अवसर पर आयोजित की जा रही अखिल भारतीय संस्कृत सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता, गीता श्लोक उच्चारण प्रतियोगिता आदि के बारे में जानकारी प्रदान की। मंच के सदस्य कमलापति मैठाणी ने इस कार्यक्रम के तकनीकी सहयोग के लिए उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय की मीनाक्षी सिंह, एकता, आलोक पति मैठाणी एवं परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से उपस्थित सभी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। 


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