क्यों पड़ता है मलमास? क्या है इसकी विशेषता ?क्या विशेष करें मलमास में आइए जानते हैं



देहरादून, डॉ राम भूषण बिजल्वाण।  भारतीय सनातन परम्परा में ज्योतिषीय गणना का अपना एक अलग महत्व रहा है यह महान परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है भारतीय ज्योतिष अपने आप में पूर्ण वैज्ञानिक है इसकी वैज्ञानिकता की प्रामाणिकता को इस रूप से देख सकते है कि यह ज्योतिषीय गणित में ही सम्भव है कि आने वाले 50 या 100 वर्षों में होने वाली ग्रहो की घटना जैसे सूर्य चन्द्र ग्रहण आदि कब और किस दिन पड़ेंगे उस दिन और समय को हम ज्योतिष विज्ञान के माध्यम से आज बता सकते है अब कल से शुरू होने वाले मलमास या अधिक मास को ही देख लेते है यह किस प्रकार होता है और कब होता है मलमास या अधिक मास की क्या विशेषता है हम बात करे इस वर्ष 2020 की तो इसमें कुछ न कुछ ऐसा घटित हो रहा है,जो शताब्दियों में हुआ हो।सन 1920 में प्लेग महामारी बनकर आया था तो इस वर्ष कोरोना जी का जंजाल बन गया है। प्रायः सभी लोग जानते है कि प्रत्येक वर्ष श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के उपरान्त अगले दिन से नवरात्र प्रारम्भ हो जाते थे।ऐसा किसी एक वर्ष में नही अपितु शताब्दियों से होता आ रहा है। श्राद्धपक्ष में तिथि के अनुसार सनातन परम्परा का निर्वहन करने वाले लोग अपने दिवंगत पितरों श्रद्धा से जो भी अर्पण करते है उसे श्राद्ध तर्पण कहा गया है और पितरों को प्रसन्न करने के ठीक बाद नवरात्र शुरू होते ही देवी का पूजन घटस्‍थापना व जौ हरियाली रोपित करने के साथ नौ दिनों तक नवरात्र रूप में सभी नौ शक्तियों की पूजा होती है। लेकिन  इस साल ऐसा नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्‍त होते ही अधिकमास /मलमास लग जाएगा। अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा।जिस कारण नवरात्र श्राद्ध पक्ष पूरे होने के एक माह बाद शुरू हो पाएंगे। आश्विन मास में मलमास का लगना और एक महीने के अंतर पर अर्थात एक माह बीतने पर नवरात्र के रूप में दुर्गा पूजा का आरंभ होना एक ऐसा संयोग है जो 165 वर्ष बाद घटित हो रहा है।
जिसके पीछे इस वर्ष में लीप वर्ष होना है। इसीलिए चातुर्मास जो श्रावण देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल देवोत्थानी एकादशी तक हमेशा चार महीने का ही होता है, वह भी इस बार पांच महीने का होगा। ज्योतिष गणना क़े अनुसार 160 वर्ष बाद लीप वर्ष आता है और इस बार अधिकमास होने के कारण दोनों ही एक साथ इस वर्ष में हो रहे हैं। ज्योतिषिय मतानुसार चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, आदि मांगलिक कार्य नहीं भी होते है। हालांकि इस दुर्लभ काल में पूजा अर्चना, भागवत कथा, उपवास, साधना और ईश्वरीय उपासना निष्काम कर्म का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों में प्रसंग आता है कि इन चातुर्मास में देव सो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागृत होते हैं।तभी मांगलिक कार्य शुरू हो पाते है।इस माह 17 सितंबर  को श्राद्ध खत्म हों जाएंगे। इसके अगले ही दिन अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद ही  17 अक्टूबर से नवरात्र पूजा प्रारंभ हो पाएगी। जबकि 25 नवंबर को देवोत्थानी एकादशी होगी। तदुपरान्त ही चातुर्मास का समापन होगा।एक साथ दो आश्विन मास होने से त्योहारों में भी देरी होगी। आश्विन मास में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिकमास लगने के कारण ही इस बार दशहरा 25 अक्टूबर को तो दीपावली 13-14 नवंबर को मनाई जाएगी। ज्योतिषीय घटनाक्रम में देखे तो एक सौर वर्ष 365 दिन व लगभग 6 घंटे का होता है, जबकि एक चांद्र वर्ष 354 दिनों का बताया गया है। सूर्य व चन्द्रमा के वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। यह अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्रमा मास अतिरिक्त आ जाता है, इसी को अधिकमास या मलमास कहा गया है।अधिकमास को ही मलमास भी कहते हैं। इसका कारण, इस पूरे महीने में शुभ कार्यो का न होना हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है। तभी इसे मलमास कहते हैं। धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार मलिनमास होने के कारण कोई भी देवी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और कोई भी इस माह के देवी देवता नहीं बनना चाहते थे, तब मलमास ने स्‍वयं श्रीहरि से उन्‍हें स्‍वीकार करने का निवेदन किया था। तब श्रीहर‍ि विष्णु ने इस महीने को अपना नाम दिया पुरुषोत्‍तम मास। तब से इस महीने को पुरुषोत्‍तम मास भी कहा जाने लगा है। इसीलिए इस माह भागवत कथा विष्णु पुराण हरिवंशपुराण सुनने व सुनाने का विशेष महत्‍व अर्थात फल माना गया है। साथ ही इस माह में निष्काम भाव से दान पुण्‍य करने से मोक्ष की प्राप्ति की मान्यता भी हैं।इस मास को सभी मासों का स्वामी भी कहा गया है। यह इस भूमंडल पर विशेष कर इस कलिकाल में पूज्य व एवं नमन करने योग्य है। इस मास में धार्मिक कथा कीर्तन जप तप यज्ञ करने से दु:ख-दरिद्रता का नाश होता है तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है। जो कोई भी इच्छा रहित या इक्षित फल के साथ पुरुषोतम मास को पूजता है , वह निःसन्देह परमात्मा को प्राप्त होता है।
इस प्रकार सब साधनों में श्रेष्ठ तथा सब काम व अर्थ का देने वाला यह पुरुषोत्तम मास स्वाध्याय योग्य है। इस मास में किये गए पुण्य का फल कोटि गुणा अधिक होता है। लेकिन जो इस मलमास का तिरस्कार करते है और जो इस मास में धर्म का आचरण नहीं करते, वे सदैव नरकागामी हो जाते है। 
पुरुषोतम मास में केवल ईश्वर के निमित्त व्रत, दान, हवन, पूजा, ध्यान आदि करने का विधान है। ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार इस मास किए गए सभी शुभ कार्यों का फल सहस्र गुणा अधिक फल प्राप्त होता है। इसलिए इस माह में अधिक से अधिक भागवत कथा श्रवण,पुराण वाचन, श्रवण, गौसेवा,गौपूजन, विष्णु पूजन दान यज्ञ-जप-तप गंगास्नान, तीर्थस्थलों पर स्नान और दान का महत्व है।
इस पूरे माह में ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र या गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र का नियमित जप करना चाहिए। साथ ही श्रीविष्णुसहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त, हरिवंश पुराण और एकादशी महात्म्य कथाओं के श्रवण से निश्चित रूप से सर्व मनोरथ पूर्ण होंगे।
लेखक डॉ राम भूषण बिजल्वाण प्राचार्य श्री गुरु रामराय लक्ष्मण संस्कृत महाविद्यालय देहरादून हैं।



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