हम अपने ही राज्य में अपमानित क्योंः भावना पांडे



-दून में बाहरी लोग बनाते हैं हमारे जीने के नियम-कायदे

-यदि जरूरत पड़ी तो पहाड़ी मानुष अभियान चला कर खदेडेंगे बाहरी लोगों को

देहरादून। हमने राज्य आंदोलन पहाड़ के विकास और यहां बुनियादी सुविधाएं के लिए किया, लेकिन आज स्थिति यह हो गयी है कि हम अपने ही राज्य में बेगाने से हो गये हैं। अपने ही राज्य में निवास के लिए हमें यूपी-हरियाणा से आए लोगों द्वारा बनाए गये नियम-कायदों के तहत जीना होगा। इसका जीता-जागता उदाहरण राजपुर रोड स्थित राजपुर रेसीडेंसी से लिया जा सकता है। यहां मैंने हाल में गढ़वाल और कुमाऊं से आने वाले लोगों के लिए उत्तराखंड़ भवन के तौर पर रहने की व्यवस्था की है। इसमे ंपर्वतीय जिलों से आने वाले लोगों को निशुल्क ठहराया जाएगा। हमारी सरकारों को चाहिए था कि वो देहरादून में गढ़वाल- कुमाऊं भवन बनवाए ताकि पर्वतीय जिलों से आने वाले लोगों को होटलों में न ठहरना पड़े लेकिन सरकार ऐसा नहीं कर रही है। राजपुर रेसीडेंसी के फ्लैट में जब शाम को मेरा सामान का ट्रक पहुंचा तो सोसायटी के प्रेसीडेंट भटनागर ने ट्रक रोक दिया। उनका कहना था कि नियमानुसार शाम सात बजे के बाद सोसायटी में वाहन नहंी आ सकता है। ये फ्लैट राज्य आंदोलनकारी का है। यानी राज्य आंदोलनकारी का फ्लैट, राज्य आंदोलनकारी का सामान लेकिन हुक्म चलता है बाहरी मिस्टर भटनागर का। क्या हम पहाड़ी अपने ही राज्य में बाहरी लोगों द्वारा अपनानित होंगे। मैंने इस नियम को खूब विरोध किया और किसी तरह से अपना सामान सोसायटी गेट के अंदर पहुंचाया लेकिन यह हद है।
इसी तरह से लाॅकडाउन के दौरान पिनाकल रेसीडेंसी में मैं गरीब, मजदूर और जरूरतमंद लोगों के लिए नियमित 300 लोगों का खाना बनाती थी। मैं सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर रही थी। पुलिस-प्रशासन की मदद कर रही थी। डीएम ने मुझे कोरोना वारियर भी घोषित किया लेकिन मेरी सोसायटी में मेरा खूब विरोध हुआ। इस सोसायटी के पदाधिकारी मुझे लोअर ग्राउंड फ्लोर पर गरीबों के लिए खाना नहीं बनवाने दे रहे थे। मुझे उनसे भी लड़ना पड़ा। यदि मैं उनसे डर जाती तो 26 दिनों तक जो मैंने मजदूरों और जरूरतमंदों को लाॅकडाउन के दौरान खाना दिया संभवत वह नहीं दे पाती। मैं यह नहीं कहती कि नियम-कायदे नहीं होने चाहिए। बेशक हों, लेकिन उनमें लचकता तो हो। परिस्थितियों के अनुकूल तो सीमाओं पर भी नियमों में ढील दी जाती है। फिर हाउसिंग सोसाइटीज में क्यों नहीं यह ढील हो? दरअसल, यह सच है कि इन सोसायटी में असामाजिक लोग ही रहते हैं। कथित रूप से धनवान लोगों के दिल छोटे होते हैं। उन्होंने या उनके परिवार ने अपनी मोटी अवैध कमाई से सोसायटी में फ्लैट तो बना लिए हैं लेकिन चाहते हैं कि जो हुक्म उनका उन्हें छोड़ चुके बहू-बेटे पर नहीं चला, वो पहाड़ी लोगों पर चलाएं।


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