Friday, 16 July 2021
पर्यावरण बचाओ मानवता को बचाओः डा. बी.के.एस. संजय
देहरादून, गढ़ संवेदना। उत्तराखंड राज्य का लोकपर्व हरेला के अवसर पर पौधारोपण का कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उत्तराखंड राज्य के पद्मश्री आर्थोपीडिक एवं स्पाइन सर्जन डाॅ. बी. के. एस. संजय, bjp मंडल अध्यक्ष पूनम नौटियाल, कार्यक्रम के संयोजक दून विहार, जाखन के पार्षद संजय नौटियाल एवं अन्य राजपुर क्षेत्र के निवासियों की उपस्थिति में पौधारोपण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। जिसमें मुख्यतः पीपल, नीम, बरगद, आदि के पौधे राजकीय प्राथमिक विद्यालय, बापू नगर, जाखन, नगर क्षेत्र देहरादून में रोपित किये गये।
पौधारोपण के दौरान डाॅ. बी.के.एस. संजय ने बताया कि हरेला का अर्थ हरियाली से है इस दिन सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की कामना की जाती है ऋग्वेद में भी हरियाली के प्रतीक हरेला का उल्लेख किया गया है। इसके साथ डाॅ. संजय ने आये हुए सभी गणमान्य लोगों से अपील की कि हम सबको पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए। जिसके लिए पर्यावरण को बचाने के लिए अधिक से अधिक पौधारोपण करना चाहिए। डाॅ. संजय ने वृक्षांे के महत्व को बताया और खासतौर से पीपल के वृक्ष की कई अहम जानकारियां बताते हुए कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पीपल का पेड़ एक सच्चा जीवन वृक्ष है। और पेड़ों के विपरीत यह रात में भी आॅक्सीजन छोड़ता है। पर्यावरणविद् पीपल के पेड़ लगाने के लिए बार-बार इसीलिए कहते है। पीपल के पेड़ में कई औषधीय गुण भी पाये जाते है। जिसका प्रयोग आयुर्वेद में अस्थमा, मधुमेह, दस्त, मिर्गी, संक्रामक एवं अन्य यौन विकारों में किया जाता है।
डाॅ. संजय ने बताया कि भारतवर्ष में पीपल के पेड़ एवं तुलसी के पौधे की पूजा करना घरों एवं मंदिरों में एक आम बात है। पीपल के पेड़ का मूल निवास भारतीय महाद्वीप एवं इंडोनेशिया माना जाता है। भारतीय उप महाद्वीप में पीपल का पेड़ धार्मिक मान्यतानुसार भारत के तीन प्रमुख धर्मो में जैसे हिन्दू धर्म, बौद्व धर्म एवं जैन धर्म में इसको बहुत पवित्र माना जाता है। पीपल के पेड़ से बनी हुई प्रार्थना की माला को पवित्र माना जाता है जो जाप करने के काम आती है। पीपल का पेड़ भारतीय सभ्यता में बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। गौतम बुद्ध ने ज्ञानार्जन बिहार के गया एवं वेद व्यास ने महाभारत का लेखन उत्तर प्रदेश के शुक्रताल में पीपल के पेड़ के ही नीचे बैठकर की थी। इसलिए आज भी पीपल का पेड़ हिन्दु, बौद्ध, जैन मंदिरों में निश्चित तौर पर लगाया जाता है ऐसा कोई पवित्र स्थान नहीं होगा जहां पर पीपल का पेड़ न हो।
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