आईआईटी मद्रास ने ई-कचरे से निपटने का अभिनव मॉडल विकसित किया

देहरादून। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-कचरे) से निपटने का अभिनव मॉडल विकसित कर रहा है, जिसके तहत संगठित और असंगठित अर्थव्यवस्था के भागीदारों को आपस में जोड़ा जाएगा। ‘ई-सोर्स‘ नामक यह प्लैटफॉर्म एक एक्सचेंज प्लेटफॉर्म होगा जो वेस्ट इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (डब्ल्यूईईई) का ऑनलाइन मार्केट होगा और विभिन्न भागीदारों (खरीदारों और विक्रेताओं) को संगठित आपूर्ति श्रृंखला की सुविधा देगा। शोध बताते हैं कि वर्तमान में पूरी दुनिया में सालाना 53.6 मिलियन टन ई-कचरा पैदा होता है, जिसके अगले 16 वर्षों में दोगुना होने का अनुमान है। इन शोधों का यह भी अनुमान है कि पूरी दुनिया में इसका 85 प्रतिशत नष्ट हो रहा है। आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं ने ‘सर्कुलर इकोनॉमी‘ पर ध्यान केंद्रित रखते हुए ई-कचरा के क्षेत्र की कमी दूर करने का काम हाथों में लिया है जिसके परिणामस्वरूप 50 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के दरवाजे खुल सकते हैं। भारत के लिए भी ई-कचरा गंभीर होती समस्याओं में से एक है और सबसे अधिक ई-कचरा पैदा करने में हमारा देश दुनिया में तीसरे स्थान पर है। इतना ही नहीं, 2019 और 2020 के बीच भारतीयों ने 38 प्रतिशत अधिक ई-कचरा पैदा किया। और इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि हमारे देश में सिर्फ 5 प्रतिशत ई-कचरे को जिम्मेदारी के साथ रिसाइकिल किया जाता है। ई-सोर्स नामक इस पहल का नेतृत्व इंडो-जर्मन सेंटर फॉर सस्टेनेबिलिटी (आईजीसीएस) करता है। आईजीसीएस टीम का यह दृढ़ विश्वास है कि ई-कचरे की समस्या दूर होगी यदि हम उपयोग हो गए और बेकार पड़े इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और कम्पोनेंट के खरीदारों और विक्रेताओं को आपस में इस तरह जोड़ दें कि दोनों के हितों की रक्षा हो। ‘ई-सोर्स‘ नामक इस पहल का मकसद उपभोग के बाद बाजार में जमा ई-कचरे का पता जानना और उनकी रिकवरी की व्यवस्था कर सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देने में ‘वेस्ट इलेक्ट्रिकल इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट‘ (डब्ल्यूईईई) को एक मुख्य संसाधन का रूप देना है। ‘ई-सोर्स‘ पहल की अहमियत बताते हुए प्रो. सुधीर चेल्लराजन, फैकल्टी मेंबर, इंडो-जर्मन सेंटर फॉर सस्टेनेबिलिटी (आईजीसीएस), आईआईटी मद्रास ने कहा, ‘‘ई-कचरा निपटान और प्रबंधन को संगठित रूप देने के लिए एक नया ओपन-सोर्स सॉल्यूशन चाहिए जो डेटा से समृद्ध हो और पारदर्शिता होने की क्षमता का लाभ उठा सके। आम तौर पर या तो कीमती धातु और अन्य महंगी सामग्री निकालने के लिए ई-कचरे को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया जाता है या फिर सीधे लैंडफिल में फेक दिया जाता है। उनके दुबारा उपयोग और वैकल्पिक उपयोग पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। लेकिन रीसाइकिल करने की यह अवैज्ञानिक प्रक्रिया इस काम में लगे लोगों और हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है।‘‘ प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से बताते हुए प्रो. सुधीर चेल्लराजन, जो मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग, आईआईटी मद्रास में भी फैकल्टी हैं उन्होंने कहा, “ई-सोर्स एक अभूतपूर्व ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म है जो आगे चल कर ई-कचरे की बेहतर ट्रेसेबिलिटी के लिए संबंधित नियमों के अनुपालन में मशीन लर्निंग के उपयोग को बढ़ावा देगा और ई-कचरे की मरम्मत और पुनः उपयोग के अवसर बढ़ाने में सहायक होगा। यह शहर की परिधि में रहने वाले युवाओं और महिलाओं का कौशल बढ़ाएगा और उनके पेशाजन्य स्वास्थ्य और सुरक्षा में भी सुधार करेगा। साथ ही, कचरे के प्रवाह में विषाक्त पदार्थों का जाना कम करेगा और सस्ते, सेकेंड-हैंड ई-उपकरणों का बाजार बड़ा कर रोजगार भी बढ़ाएगा।’’

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