डा. वाचस्पति मैठाणी के नाम पर हो बालगंगा महाविद्यालय का नाम

देहरादूना। शिक्षाविद डा.वाचस्पति मैठाणी की 72वीं जयंती पर स्मृति मंच द्वारा संस्कृत का महत्व एवं डॉ वाचस्पति मैठाणी का बहुआयामी व्यक्तित्व विषय पर एक बेबीनार कार्यक्रम का आयोजन गया। जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों ने अपने विचार रखे। वक्ताओं ने डॉ मैठाणी द्वारा स्थापित महाविद्यालय को उनके नाम पर रखने की मांग की। इस अवसर पर स्मृति मंच के संरक्षक पूर्व शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने कहा कि डॉ मैठाणी ने शिक्षा एवं संस्कृत भाषा के उन्नयन के लिए जो अतुलनीय कार्य किए आज उन कार्यों को आगे बढ़ाने की जरूरत है तभी हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि डॉ मैठाणी ने संस्कृत भाषा के लिए विशेष कार्य किए और देहरादून में अपने घर पर ही विश्व के पहले प्राथमिक संस्कृत विद्यालय की स्थापना के साथ साथ स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षण संस्थाएं खोली। संस्कृत भाषा को उत्तराखंड की द्वितीय राजभाषा बनाने में डॉ मैठाणी की अहम भूमिका रही। कार्यक्रम के अध्यक्ष संस्कृत शिक्षा निदेशक शिव प्रसाद खाली ने कहा की संस्कृत शिक्षा विभाग डॉ मैठाणी जी के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत है। उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ आनंद भारद्वाज ने कहा कि डॉ मैठाणी ने बिनोवा भावे की तरह अपना सामान्य जीवन जी कर शिक्षा की जो मशाल जलाई है उसको आगे बढ़ाने के लिए हम सबको कार्य करना होगा। समाजसेवी श्रीमती सुमित्रा धूलिया ने कहा कि डॉ मैठाणी ने बालिकाओं में सुसंस्कार पैदा करने के लिए पहाड़ के दुर्गम क्षेत्र में अलग से बालिका स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय के साथ साथ अन्य महाविद्यालयों की भी स्थापना की जिसका लाभ उन बालिकाओं को मिलेगा जो किसी कारणवश घर से दूर नहीं जा पाती हैं। पूर्व आयुर्वेद निदेशक डॉ मायाराम उनियाल ने कहा कि डॉ मैठाणी ने अपना जीवन शिक्षा के प्रचार-प्रसार एवं शैक्षणिक संस्थाओं को खोलने के लिए समर्पित कर दिया। प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समाजसेवी शंभू प्रसाद रतूड़ी ने राज्य सरकार से डॉ मैठाणी द्वारा स्थापित बालगंगा महाविद्यालय सेंदुल का नाम डॉ वाचस्पति मैठाणी के नाम पर रखने की मांग की। प्रसिद्ध गांधीवादी विजय कुमार हांडा ने कहा कि डॉ मैठाणी शिक्षा के साथ-साथ समाज के गरीब तबके के उत्थान के लिए भी समर्पित रहे। इस अवसर पर जनकवि बेलीराम कंसवाल एवं विजय रतूड़ी ने डॉ मैठाणी पर स्वरचित कविता सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ आशाराम मैठाणी ने किया। इस अवसर पर विजय बडोनी, डॉ हरीश चंद्र गुरुरानी, डॉ संजू प्रसाद ध्यानी, किरन डंडरियाल, विजय कुमार श्रीवास्तव, ज्योति शर्मा, दिनेश उनियाल, कमलापति मैठाणी, आरबी सिंह, कैलाशपति मैठाणी, डॉ बबीता आदि उपस्थित रहे।

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