नई दिल्ली, गढ़ संवेदना न्यूज: कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया नई दिल्ली में नेशनल एचीवर रिकॉग्नेशन फोरम द्वारा आयोजित नेशनल सेमिनार में देश के विभिन्न हिस्सों से आए अपने अपने क्षेत्र की विशिष्ट प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के मुख्यातिथि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवम सांसद तीरथ सिंह रावत, सांसद अनिल अग्रवाल, पूर्व राज्य मंत्री धीरेन्द्र प्रताप, पूर्व राजदूत के. एल. गंजू एवम क्त जेनिस दरबारी, तुषार पटनायक डारेक्टर डाबर इंडिया लिमिटेड, भाजपा नेता राम कुमार वालिया आदि रहे। कार्यक्रम का संयोजन फोरम के अध्यक्ष सुनील कुकरेजा ने किया। कार्यक्रम में पूरे देश के विभिन्न प्रदेशों से आए अलग अलग क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वाले लोगों को फोरम द्वारा नेशनल एचिवर अवार्ड देकर सम्मानित किया गया। पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पुरस्कार विजेताओ को भारत की नई ताकत बताया। धीरेंद्र प्रताप ने प्रतिभा के लिए उद्देश्य आवश्यक बताया।जबकि राज्य सभा सांसद अनिल शर्मा ने विजेताओं की उपलब्धि को शानदार बताया। समारोह में उत्तराखंड की जानी मानी साहित्यकार रामेश्वरी नादान को बाल साहित्य पर...
टिहरी। पीजी कॉलेज गृह विज्ञान विभाग की विभागीय परिषद की पहल पर टाई एंड डाई, व्यंजन और रंगोली प्रतियोगिता आयोजित की गई। व्यंजन प्रतियोगिता में एमए तृतीय सेमेस्टर की पूजा चौहान, टाई एंड डाई में बीए प्रथम वर्ष की सोनाक्षी राज और रंगोली में काजल विजेता बनी। मंगलवार को आयोजित कार्यक्रम का प्राचार्य डा. रेनू नेगी ने शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि युवा वर्ग में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जरूरत उन्हें उचित अवसर देने की है। गृह विज्ञान विभाग की डा. पुष्पा कुमारी ने बताया कि प्रतियोगिता कराने का लक्ष्य प्रतिभागियों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा करना है। व्यंजन प्रतियोगिता में पूजा चौहान प्रथम, एमए प्रथम सेमेस्टर की लाइसा खान द्वितीय और बीए द्वितीय वर्ष की काजल तृतीय रही। टाई एंड डाई प्रतियोगिता में सोनाक्षी राज प्रथम, बीए प्रथम वर्ष की विनीता द्वितीय और बीए प्रथम वर्ष की अलीशा तृतीय रही। वहीं रंगोली प्रतियोगिता में काजल प्रथम, रूपाली द्वितीय और शीतल रावत तृतीय रही। विजेताओं को सम्मानित किया गया। इस मौके पर विभागाध्यक्ष डा. प्रीति, डा. इंदिरा जुगरान, डा. कविता काला, डा. रजनी गुसाईं, डा. साक्षी शुक्...
देहरादून। उत्तराखंड में जंगलों में लगने वाली आग से बड़ी मात्रा में बेशकीमती वन संपदा नष्ट हो रही है। राज्य में हर वर्ष जंगलों में आग लगती है, लेकिन इससे निपटने के लिए सरकार द्वारा न कोई दीर्घकालिक योजना बनाई गई है और न ही कोई कारगर कदम ही उठाए जाते हैं। जंगलों में लगने वाली आग के प्रति वन विभाग अक्सर उदासीन ही बना रहता है। वनाग्नि की घटनाएं न हों इसके लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए जाते हैं। ग्रामीणों को वनाग्नि के प्रति जागरूक करने की दिशा में भी कोई सार्थक प्रयास नहीं हो रहे हैं, जिस कारण ग्रामीण भी लापरवाह बने रहते हैं। उत्तराखण्ड में मुख्यतः चीड़ के वन ही जंगलों में आग की विभिषिका के लिए उत्तरदायी है। उत्तराखण्ड में समुद्र सतह से 300 से 2000 मीटर की ऊँचाई पर पाये जाने वाले वनों में क्रमशः साल, चीड़ एवं बांज वनों में चीड़ के वनों का बाहुल्य है। स्थानीय निवासी चीड़ के वनों से जलावनी लकड़ी, पिरूल, फल-फूल एवं अन्य वन्य उत्पाद अपनी आजीविका हेतु इक्ट्ठा करते हैं। वन विभाग के लिए चीड़ के वृक्ष लीसा एवं ईमारती लकड़ी के रूप में एक मुख्य आय के स्रोत हैं। सालाना लगभग 70 से 80 हजार क्विंटल लीसा उत...