फूलों का अद्भुत संसार, यहां खिलते हैं 500 से ज्‍यादा प्रजाति के फूल

देहरादून, गढ़ संवेदना न्यूज
। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी फूलों का अद्भुत संसार है। यहां 500 से ज्‍यादा प्रजाति के फूल खिलते हैं। फूलों की घाटी समुद्रतल से 12995 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। फूलों की घाटी में दुनिया के दुर्लभ प्रजाति के फूल, वन्य जीव-जंतु, जड़ी-बूटियां और पक्षी पाए जाते हैं। इस घाटी को वर्ष 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने के बाद यूनेस्‍को ने 2005 में इसे विश्व प्राकृतिक धरोहर का दर्जा दिया। फूलों की घाटी जैव विविधिता का खजाना है। घाटी की खोज वर्ष 1932 में ब्रिटिश पर्वतारोही व वनस्पति शास्त्री फ्रैंकस्मित ने की थी। वर्ष 1937 में फ्रैंकस्मित ने वैली आफ फ्लावर नामक पुस्तक लिखकर अपने अनुभवों को दुनिया के सामने रखा। फूलों की घाटी 87.5 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली हुई है। वहीं यहां सीजन में हर साल देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं। फूलों की घाटी में दुनियाभर में पाए जाने वाले फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। हर साल देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यह घाटी आज भी शोधकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र है। गढ़वाल के ब्रिटिशकालीन कमिश्नर एटकिंसन ने अपनी किताब हिमालयन गजेटियर में 1931 में इसको नैसर्गिक फूलों की घाटी बताया। वनस्पति शास्त्री फ्रेक सिडनी स्माइथ जब कामेट पर्वतारोहण से वापस लौट रहे थे तो रास्ता भटक जाने से वे फूलों की घाटी पहुंचे। फूलों से खिली इस सुरम्य घाटी को देख मंत्रमुग्ध हो गए। 1937 में फ्रेक एडिनेबरा बाटनिकल गार्डन की ओर से फिर इस घाटी में आए और तीन माह तक यहां रहे। उन्होंने वैली आफ फ्लावर्स नामक किताब लिखी तो विश्व ने इस अनाम घाटी को जाना। फूलों की घाटी में 500 प्रजाति के फूल अलग-अलग समय पर खिलते हैं। यहां जैव विविधता का खजाना है। यहां पर उगने वाले फूलों में पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पापी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्मकमल, फैन कमल जैसे कई फूल यहां खिले रहते हैं। घाटी मे दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पति, जड़ी बूटियों का है संसार बसता है। घाटी में जून से अक्टूबर तक फूलों की महक फैली रहती है। फूलों की घाटी अगस्त सितंबर में तो फूलों से लगकद रहती है। फूलों की घाटी पहुंचने के लिए बदरीनाथ हाइवे से गोविंदघाट तक पहुंचा जा सकता है। यहां से तीन किमी सड़क मार्ग से पुलना और 11 किमी की दूरी पैदल चलकर हेमकुंड यात्रा के बैस कैंप घांघरिया पहुंचा जा सकता है। यहां फूलों तीन किमी की दूरी पर फूलों की घाटी है। फूलों की घाटी में जाने के लिए पर्यटक को बैस कैंप घांघरिया से ही अपने साथ जरूरी खाने का सामान भी ले जाना पड़ता है। क्योंकि वहां पर दुकाने नहीं है। फूलों की घाटी एक जून से 31 अक्तूबर तक खुली रहती है। यहां पर तितलियों का भी संसार है। इस घाटी में कस्तूरी मृग, मोनाल, हिमालय का काला भालू, गुलदार, हिम तेंदुएं भी रहते है। फूलों की घाटी वैसे तो कई महत्वपूर्ण जड़ी-बुटियों के लिए जानी जाती हैं लेकिन यहां मुख्य तौर पर गेंदा, लिगुलारिया, सैक्सिफागा,जर्मेनियम, प्रिभुला, जिउम, तारक, हिमालयी नीला पोस्त, अनाफलिस, रोडोडियोड्रान, रानुनकुलस, कम्पानुला, मोरिना, पोटेन्टिला, बछनाग,पेडिक्युलरिस,सौसुरिया, इन्डुला सहित 500 से अधिक फूलों की प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां खिलने वाले फूल बरबस ही लोगों का मन मोह लेते हैं। उत्तराखंड स्थित विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी बेहद लोकप्रिय है। यहां हर साल लाखों की तादाद में पर्यटक आते हैं और फूलों की घाटी की सुंदरता का लुत्फ उठाते हैं। यह राष्ट्रीय उद्यान चमोली जिले में स्थित है। इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया है। पर्यटक यहां कई दिनों का टूर पैकेज लेकर घूमने जाते हैं और कैंप लगाकर रहते हैं। यह क्षेत्र ट्रेकिंग के लिए भी मशहूर है। फूलों की घाटी 87.50 किमी वर्ग क्षेत्र में फैली है। यहां फूलों की 500 से ज्यादा प्रजातियां हैं। फूलों की घाटी का नजदीकी कैंपिंग साइट घांघरिया का सुरम्य गांव है, जहां शिविर लगाकर पर्यटक कई दिनों तक रहते हैं और फूलों की घाटी के आसपास के पर्यटक स्थलों की भी घुमक्कड़ी करते हैं। यहां ब्रह्मकमल के फूल भी देखने को मिलते हैं। इस फूल के बारे में कहा जाता हैं कि यह सिर्फ साल में केवल एक बार ही खिलता हैं वह भी सिर्फ रात्रि में, धार्मिक और प्राचीन मोन्यताओं के अनुसार ब्रह्म कमल को इसका नाम, जन्म देने वाले देवता ब्रह्मा के नाम पर मिला है। विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी का वर्णन रामायण और महाभारत दोनों ही महाग्रंथों में मिलता है। मान्यता हैं कि जब धर्म युद्ध में लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा था तो हनुमान जी इसी घाटी से संजीवनी बुटी लेकर गए थे। जिसके मूर्छित लक्ष्मण के प्राण बच पाए थे। फूलों के घाटे के आस-पास के गांव वाले आज भी इस स्थान को आछरियों (परियों) निवास मानते हैं। फूलों की घाटी हर साल 1 जून को खुलती है और अक्टूबर में बंद होती है। यहां विजिट करने का सबसे अच्छा वक्त जुलाई से लेकर सितंबर के बीच माना जाता है। इस घाटी में फूलों की अनेक प्रजातियां देखने को मिलती हैं जो कि पर्यटकों का दिल जीत लेती हैं। फूलों की घाटी की खोज फ्रैंक स्मिथ ने 1931 में की थी। फ्रैंक ब्रिटिश पर्वतारोही थे। फ्रेंक और उनके साथी होल्डसवर्थ ने इस घाटी को खोजा और उसके बाद यह प्रसिद्ध पर्यटल स्थल बन गया। इस घाटी को लेकर स्मिथ ने “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” किताब भी लिखी है। फूलों की घाटी में उगने वाले फूलों से दवाई भी बनाई जाती है। हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक फूलों की घाटी देखने के लिए आते हैं। जनश्रुति के अनुसार रामायण काल में हनुमान जी संजीवनी बुटी लेने के लिए फूलों की घाटी आये थे। फूलों की इस घाटी को स्थानीय लोग परियों का निवास भी मानते हैं। यही कारण है कि लंबे समय तक लोग यहां जाने से कतराते थे। स्थानीय बोली में फूलों की घाटी को भ्यूंडारघाटी कहा जाता हैै। इसके अलावा, इस घाटी को गंधमादन, बैकुंठ, पुष्पावली, पुष्परसा, फ्रैंक स्माइथ घाटी आदि नामों से बुलाया जाता है। स्कंद पुराण के केदारखंड में फूलों की घाटी को नंदनकानन कहा गया है। कालिदास ने अपनी पुस्तक मेघदूत में फूलों की घाटी को अलका कहा है। यह विश्वप्रसिद्ध फूलों की घाटी नर और गंधमाधन पर्वतों के बीच स्थित है। इसके पास ही पुष्पावती नदी बहती है, पास ही में दो ताल और लिंगा अंछरी हैं।

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