जालसाजी के मास्टरमाइंड हरक ने फर्जी मां-बेटा तैयार कर हड़पी 107 बीघा भूमिः मोर्चा

-शंकरपुर, सहसपुर की भूमि खुर्द-खुर्द का है मामला -खेल की शुरुआत अप्रैल 2003 में हुई फर्जी हस्ताक्षरित आवेदन से -आवेदिका की मृत्यु हो चुकी 1974 में -अप्रैल 2003 में हरक ने जिलाधिकारी को दिए दाखिल खारिज कराने के निर्देश -सितंबर 2002 तक प्रचलित सावित्री देवी वर्मा बनी दिसंबर 2002 में सुशीला रानी -सावित्री देवी वर्मा ने सितंबर 2002 में की अपने पुत्र के नाम वसीयत -दिसंबर 2002 में सुशीला रानी ने करी पावर ऑफ अटॉर्नी वीरेंद्र कंडारी के नाम -पावर ऑफ अटॉर्नी में सुशीला रानी भी फर्जी, रुदर्शाया गया बेटा भी फर्जी विकासनगर। जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि वर्ष 2002 में हरक सिंह रावत ने राजस्व मंत्री बनते ही मात्र एक साल के भीतर ही शंकरपुर, सहसपुर की 107 बीघा जमीन पर ऐसी नियत भरी कि फर्जी सुशीला रानी के नाम से फर्जी हस्ताक्षरित पत्र स्वयं के नाम लिखवाया, जिसमें 7/4/2003 को इनके द्वारा जिलाधिकारी को सुशीला रानी के नाम दाखिल खारिज कराने के निर्देश दिए, जिसके क्रम में माल कागजात में सुशीला रानी का नाम दर्ज हो गया। सुशीला रानी का नाम दर्ज कराने से पहले ही बड़ी चालाकी से हरक सिंह ने अपने करीबी पीए/ पीआरओ वीरेंद्र कंडारी (समीक्षा अधिकारी) के नाम 5/12/2002 को फर्जी महिला एवं फर्जी बेटा (जोकि विकासनगर ब्लॉक का रहने वाला है) प्रस्तुत कर नई दिल्ली में पावर ऑफ अटॉर्नी संपादित करा ली , जबकि सुशीला रानी की मृत्यु वर्ष 1974 में हुई, ऐसे साक्ष्य मिले हैं द्यहैरानी की बात यह है कि पावर ऑफ अटॉर्नी से मात्र 3 माह पहले सुशीला रानी उर्फ सावित्री देवी वर्मा ने अपने पुत्र भीमसेन वर्मा के नाम वसीयत संपादित कराई थी, जिसमें उन्होंने हस्ताक्षर के रूप में सावित्री देवी वर्मा लिखा था, लेकिन पावर ऑफ अटॉर्नी में सुशीला रानी लिखा था, इस प्रकार दोनों दस्तावेजों में विरोधाभास था द्य सवाल यह है कि क्या दो नाम से प्रचलित व्यक्ति अपने हस्ताक्षर अलग-अलग नाम से कर सकता है ! पावर ऑफ अटॉर्नी हासिल करते ही श्री हरक सिंह ने अपने खास राजदार श्री वीरेंद्र कंडारी के जरिए अपनी पत्नी श्रीमती दीप्ति रावत के नाम 4.663 हेक्टेयर यानी 60 बीघा भूमि का बैनामा (रजिस्ट्री) करा दिया ,जिसमें बड़ी चालाकी से पति हरक सिंह के नाम की जगह पिता का नाम दर्शाया गया तथा पता भी गढ़वाल का दर्शाया गया तथा इसी प्रकार अपनी करीबी लक्ष्मी राणा के नाम 3.546 हेक्टेयर यानी 47 बीघा भूमि का बैनामा करा दिया, जिसमें पता गढ़वाल का दर्शाया गया, जिससे किसी को कोई संदेह पैदा न हो द्य उक्त फर्जीवाड़े के चलते कई विवाद उत्पन्न हुए एवं उक्त विवादों के चलते वर्ष 2009 में अपर जिलाधिकारी (प्रशा) द्वारा उक्त भूमि को सरकार के पक्ष में अधिग्रहित करने हेतु उप जिलाधिकारी, विकासनगर को निर्देश दिए थे तथा उक्त फर्जीवाड़े के मामले में थाना सहसपुर में वर्ष 2011 में भी मुकदमा कायम किया गया था। अन्य कई घोटाले भी उनके नाम दर्ज हैं। मोर्चा सरकार से मांग करता है कि उक्त जमीन को सरकार के पक्ष में अधिग्रहित कर जालसाजों के खिलाफ कार्रवाई करे अन्यथा भ्रष्टाचार रोधी ऐप एवं बड़ी-बड़ी बातें करना बंद करें। पत्रकार वार्ता में- दिलबाग सिंह व ओ.पी. राणा मौजूद थे।

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