सस्टेनेबल मासिक धर्म स्वच्छता की आवश्यकता पर जोर दिया

देहरादून। देहरादून में आयोजित एक बैठक में सौख्यम रियूजेबल पैड्स की मैनेजिंग डायरेक्टर अंजू बिस्ट ने, जिन्हें भारत की पैड वुमन के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड में सस्टेनेबल मासिक धर्म स्वच्छता की आवश्यकता पर जोर दिया। सम्मेलन में जैविक सामग्री से बने पुनरू प्रयोज्य पैड, विशेष रूप से केले के रेशे से निर्मित अत्याधुनिक सौख्यम रीयूजेबल पैड के उपयोग को बढ़ावा दिया गया और डिस्पोजेबल सैनिटरी पैड के नकारात्मक प्रभावों की चर्चा की गई। सौख्यम माता अमृतानंदमयी मठ की एक पहल है। अम्मा, श्री माता अमृतानंदमयी देवी जी, आध्यात्मिक और मानवतावादी कार्यों के लिए विश्व विख्यात हैं। अम्मा जी ने सौख्यम की शुरुआत की ताकि लड़कियों और महिलाओं के पास एक सुरक्षित उत्पाद हो जो प्रदूषण न फैलाता हो। यह अब अच्छी तरह से प्रलेखित है कि डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन के अधिकांश ब्रांडों में खतरनाक रसायन और विषाक्त पदार्थ होते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। पिछले साल सौख्यम रियूजेबल पैड्स को नीति आयोग से वीमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवॉर्ड मिला था। इस साल वार्षिक मासिक धर्म स्वच्छता सम्मेलन में, इसे मासिक धर्म स्वच्छता पर सर्वश्रेष्ठ सामाजिक पहल का पुरस्कार दिया गया था। जागरूकता फैलाने और सस्टेनेबल मासिक धर्म स्वच्छता प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए, सौख्यम उन्नत भारत अभियान के सहयोग से, पूरे उत्तराखंड के कॉलेजों में कार्यशालाएं आयोजित कर रहा है। उन्नत भारत अभियान, भारत सरकार की एक पहल है, जो कॉलेजों को अपने आसपास के गांवों को गोद लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैद्य प्रवीण बिस्ट, अमृता हॉस्पिटल के सी आई ओ, ने कहा, ”आईआईटी रूड़की के साथ सौख्यम टीम ने उनके गोद लिए हुए गांव की 3000 महिलाओं तक रियूजेबल पैड्स पहुंचाने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट की रूप रेखा तैयार की है द्य” उन्नत भारत अभियान के राष्ट्रीय समन्वयक, आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर वी के विजय ने बताया, ष्सौख्यम हमारे कॉलेज के छात्रों और ग्रामीण भारत के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। रीयूजेबल सैनिटरी पैड के लिए भारत द्वारा आईएसओ मानकों को अपनाना सस्टेनेबल मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों की बढ़ती आवश्यकता की ओर संकेत देता है। तीन साल तक चलने वाले सौख्यम रीयूजेबल पैड ने 500,000 से अधिक महिलाओं और लड़कियों के बीच लोकप्रियता हासिल की है। सीएएफ इंडिया, हिमवैली फाउंडेशन और मिराईका हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड के प्रतिनिधियों ने इस सस्टेनेबिलिटी पहल को आगे बढ़ाने के लिए अपनी योजनाओं की चर्चा की। हिमवैली फाउंडेशन पूरे उत्तराखंड के स्कूलों एवं कॉलेजों में कार्यशालाएं आयोजित करेगा। हिमवैली फाउंडेशन की अनीता नौटियाल ने सौख्यम के सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा, यह बदलाव सालाना 4000 टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन को रोकने में मदद कर रहा है। अनुमानित 43,750 टन नॉन-बायोडिग्रेडेबल मासिक धर्म अपशिष्ट को भी समाप्त कर दिया गया है।

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