पाण्डवों के अज्ञातवास का साक्षी लाखामण्डल

– हेमचन्द्र सकलानी- देहरादून, (गढ़ संवेदना) । शिव पौराणिक काल से ही नेपाल से लेकर भारत में सुदूर केरल तक सम्पूर्ण भारत के आराध्य देव माने जाते रहे हैं। प्राचीन काल से ही वे इतनी अगाध आस्था, श्रद्धा के प्रतीक रहे हैं कि उन्हें देवों के देव, महादेव के नाम से भी पुकारा गया। यही कारण है कि उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक कहीं न कहीं मंदिरों में शिव तथा नन्दी की प्रतिमांए भव्य रूप में नजर आती हैं। एलीफैन्टा केव में प्राचीन स्थापित शिवलिंग हो या शिव की प्रतिमा उत्तराखण्ड में केदारधाम, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, लाखामण्डल, या म0प्र0 में खजुराहो के मन्दिरों के शिवलिंग हांे, हि0प्र0 में चामुण्डा देवी के मंदिर में स्थापित शिवलिंग, नन्दी की प्रतिमा हो, या बैजनाथ के भव्य मन्दिर में स्थापित शिवलिंग हो या नन्दी की प्रतिमा हो, या गुजरात में सोमनाथ में स्थापित शिवलिंग हो, शिव अपनी भव्यता तथा पौराणिक कथाओं के साथ पूरे भारत में नजर आते हैं। उत्तराखण्ड के सतोपथ शिखर जहां से युधिष्ठिर ने स्वर्ग गमन किया था वहां से लेकर सम्पूर्ण उत्तराखण्ड का महाभारत काल से गहरा सम्बन्ध ...